Wednesday, October 13, 2010

हरा समंदर गोपी चंदर. (False Pride)


गोपी ने दोबारा अपने आप को दिवार पे टंगे आईने में देखा. आईने में सिर्फ उसका गोल गेहुआ रंग का चेहरा, गोल भूरी आँखें, बीड़ी के धुएं से काले पड़े होंठ और तेल से चुपड़े कंघी किये बाल नज़र आ रहे थें. उसने अपने बाल पे हाँथ फेरा की तभी उसकी पांच साल की बेटी उसकी पैंट खीचते हुए बोली, "बापू मुझे भी". गोपी ने उसको अपनी गोद मेंउठा लिया. अब आईने में पिंकी का पावडर से चुपड़ा चेहरा और सर पे दो चोटियों नज़र आ रही थी.

"अब तुम दोनों आईने के सामने ही खड़े रहोगे या चलोगे भी", गोपी की बीवी ने पीछे से आवाज़ लगायी. गोपी ने पिंकी को गोद से नीचे उतारा, और अपनी जेब से पांच पांच सौ के चार करारे नोट निकाल कर उनका निरिक्षण किया. फिर ध्यान से उन्हें अपनी पैंट के चोर पॉकेट में वापस रख लिया.

"इमरती, रिंकू कहाँ है", गोपी ने अपनी पत्नी से पुछा. तभी रिंकू बहार से दौड़ता हुआ अपने एक कमरे के घर में घुसा. "कहाँ चला गया था, देर हो रही है, जाना नहीं है", गोपी अपने सात साल के बेटे पे बरसा.

इमरती अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए दरवाज़े के पास आई, गोपी ने दोनों बच्चों का हाँथ पकड़ा और इमरती के पीछे पीछे घर से बाहर आ गया. इमरती ने अपने पल्लू में बंधी चाबी से दरवाज़े का ताला बंद किया, की तभी गली के कोने से बनिए ने आवाज़ लगायी, "इतना बन संवर कर कहाँ चली यह चौकड़ी?"

"कहीं नहीं बस वो खेल हो रहे हैं तालकटोरा में, स्टेडियम का काम हमने भी किया है न, तो सोचा बच्चों को दिखा लायें", गोपी ने दांत निपोड़ते हुए कहा.

"और सुनो! राशन का पिछला उधार चुकता नहीं होता, और ये खेल देखने जा रहे हैं", बनिए ने लच्छु जलेबी वाले की तरफ देखते हुए ताना कसा.

"सर्माजी तुम अपना काम करो. किसी को इस तरह टोकते अच्छा लगता है क्या. किसी की खुसी देखि न जाती है तुमसे." इमरती बनिए पे बरस पड़ी, और कुछ कुछ बुदबुदाती रिंकू का हाथ पकड़ कर उसे घसीटने लगी. बनिया चुप हो गया. गोपी भी चुप चाप पिंकी का हाथ पकडे इमरती के पीछे हो लिया.

झुग्गियों की बस्ती से बहार निकलते ही दुनिया अलग हो जाती थी. ऐसा लगता था दिल्ली छोड़ कर किसी और ही देश आ गए हो. चौड़ी चौड़ी सड़कें, और उन् पे दौड़ती लम्बी लम्बी गाड़ियाँ, इमारतों की उचाई देख कर इमरती को मतली आती थी. अपने परिवार के साथ बस स्टॉप पे खड़े खड़े, एक बिल्डिंग में मजदूरों को काम करता देख गोपी भी पांच साल पीछे चला गया जब वो पहली बार दिल्ली आया था.

गोपी चंदर उत्तर प्रदेश के एक गाँव से दिल्ली आया था. एक ठेकेदार ने बिल्डिंग में उसे मजदूर की नौकरी पे रख लिया था. गोपी दिन भर मजदूरी करता और शाम को गली गली घूम कर भेलपुरी और गोल गप्पे बेचता. कुछ ही महीनो की कड़ी मेहनत से गोपी ने इतने पैसे इकट्ठे कर लिए की उसने राजीव नगर की झुग्गियों में एक कमरे का मकान पांच सौ रुपये महीने किराये पे ले लिया और गाँव से अपनी बीवी को, जिसकी गोद में दो साल का रिंकू था, दिल्ली बुलवा लिया . दिल्ली आते ही इमरती के पांव फिर भारी हो गए, और गोपी के ठेकेदार ने उसके काम से खुश हो कर उसे दिल्ली के स्टेडियमओ की मरम्मत करने के लिए लगा दिया.

एक साल के बाद दिल्ली की सरकार ने दिल्ली को साफ़ करने का बीड़ा उठाया तो सारे रेहड़ी वाले और फेरी वालों पे गाज गिरी. गोपी का शाम को भेलपुरी बेचना भी बंद हो गया. कुछ दिनों के बाद ठेकेदार ने भी अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए, गोपी की तनख्वाह आधी हो गयी और कभी कभी तो तीन तीन सप्ताह तक कोई पैसे नहीं मिलते थें, फिर बनिए की दुकान से उधार लेना पड़ता, दो दो महीने तक किराया न देने पर मालिक मकान हर रोज़ तगादा करने लगा.

जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगे उनकी फरमाइशें भी बढ़ने लगी. कुछ हालात में सुधार हो जाये इसलिए इमरती ने घर घर जा कर बर्तन मांजने का काम शुरू कर दिया. पर न ही हालात में कुछ सुधार हुआ और न ही बच्चों की फरमाइशें बंद हुई. और तो और रात को खाने के समय इमरती भी ताना दे जाती, "गाँव से लोगों की जूठन साफ़ करवाने को ले कर आये थें मुझे".

बस की पों पों और उड़ती धुल ने गोपी को वापस वर्तमान में लाया. आँखें मलते हुए उसने पिंकी को गोद में उठाया और इमरती का हाथ पकड़ कर बस में चढ़ गया. बस में चढ़ कर उसने कंडक्टर से चार चार रुपये के चार टिकेट लिए और भीड़ भरी बस में एक कोने में खड़ा हो गया.

जिस दिन गोपी को पता चला था की देश विदेश से खिलाड़ी उसके बनाये स्टेडियम में खेलने आयेंगे उस दिन से उसने पैसे जोड़ने शुरू किये थे, सोचा था की अपनी बीवी और बच्चों को ले जा कर अपना बनाया स्टेडियम दिखायेगा, उनकी नज़रों में उसकी कुछ तो इज्ज़त बढ़ेगी. आज खेल शुरू होने के सात दिनों के बाद गोपी अपनी बीवी और बच्चों के साथ तालकटोरा स्टेडियम में बॉक्सिंग मैच देखने जा रहा था.

तालकटोरा के टिकेट खिड़की पे उसने ढाई ढाई सौ के तीन टिकिटें खरीदीं. गाढ़ी मेहनत के साढ़े सात सौ रुपये जाते देख गोपी का कलेजा मूह को आता था मगर बीवी के सामने खोई इज्ज़त वापस लाने की बात थी. दूसरी ओर इमरती यह सोच कर खुश थी की झुग्गी की कोई भी औरत खेल देखने को नहीं गयी थी और इसलिए कल जब मुनिसिपलिटी की नल पे सब पानी भरने को इक्कट्ठा होंगी तो वो अपने पति की बढाई कर इतराएगी.

स्टेडियम के दरवाज़े पे दो दरबानों ने गोपी और उसकी बीवी को रोका और उनके टिकिट चेक किये. मेटल डिटेक्टर को पार कर जैसे ही गोपी और उसका परिवार स्टेडियम में दाखिल हुआ, एक सुन्दर सी, सलवार कुर्ता पहने युवती ने गोपी के मूंह के पास माइक घुसेड़ते हुए पुछा "आप CWG देखने आये हैं आप को कैसा लग रहा है?".

"सी कौन ची?" गोपी अकचकाया. युवती के पीछे एक आदमी अपने कंधे में कैमरा लिए खड़ा था.

"यह खेल जो आप देखने आये हैं अपने परिवार के साथ, आपको कैसा लग रहा है?" युवती ने दोबारा पुछा.

"मैडम बहुत अच्छा लग रहा है", गोपी ने कहा.

"ये स्टेडियम इन्होने ने ही बनाया है, मैडम", इमरती ने माइक को अपनी मूंह की ओर खींचते हुए बोला.

"हाँ मैडम ये स्टेडियम में फौल सी-लिंक का काम हमने किया है", गोपी ने माइक में मूंह घुसाते हुए कहा.

"बापू हम लोग टीवी पर आयेंगे", रिंकू ने गोपी की पैंट खींचते हुए पुछा.

"जैसा की आप देख सकते हैं यहाँ पे एक मजदूर है जिसने तालकटोरा स्टेडियम के फाल्स सीलिंग का काम किया है, वो भी CWG देखने आया है और गर्व महसूस कर रहा है", युवती कैमरे की तरफ मुड़ते हुए बोली. एक और व्यक्ति को स्टेडियम में दाखिल होता देख, युवती और कैमरामैन उसकी ओर लपक लिए.

"बापू हम लोग टीवी पर कब आयेंगे", रिंकू ने फिर पुछा.

"चुप रह", इमरती ने रिंकू को झटक दिया. "अपना नाम काहे नहीं बताये टीवी वाली को?"

"पूछी नहीं तो नहीं बताये", गोपी ने सर झुकाते हुए कहा.

चारो स्टेडियम के अन्दर कोने में कुर्सियों पे जा बैठे. सामने बॉक्सिंग रिंग में दो खिलाड़ी थें. उनमे से एक ने नीली रंग की हाफ पैंट ओर नीली रंग की बनयान, और दुसरे ने लाल रंग की हाफ पैंट और लाल रंग की बनयान पहन रखी थी और एक दुसरे की धुनाई कर रहे थें. जब मामला बिगड़ जाता तो एक तीसरा आदमी जो की सफ़ेद रंग की शर्ट और काले रंग की पैंट पहने था बीच बचाव के लिए कूद पड़ता, फिर सीटी बजाता और दोनों खिलाडी फिर एक दूसरे को धुनने लगते.

ये सिलसिला कुछ देर तक चलता रहा. बीच बीच में दोनों खिलाडी कोने में बैठ बैठ कर पानी पीते और आराम करते और सीटी बजने पर फिर शुरू हो जाते. तभी लाल बनयान पहने हुए खिलाडी ने नीली बनयान वाले खिलाडी को इतनी जोर का मुक्का मारा की वो रिंग के चारों ओर लगी रस्सियों में उलझ कर धराशायी हो गया. उसके गिरते ही गोपी ने देखा फाल्स सीलिंग का एक बड़ा हिस्सा, ज़ोरदार धमाके के साथ, टूट कर दोनों खिलाड़ियों के बीच आ गिरा. एक पल के लिए गोपी को मानो ऐसा लगा की सारी दुनिया थम गयी हो. कुछ भी नहीं हिल रहा था और चारों ओर सन्नाटा छा गया था. गोपी को लगा मानो उसके सारे सपने टूट कर ज़मीन पर बिखर गए. अब तो उसकी जो भी रही सही इज्ज़त थी, उसके बीवी बच्चों की नज़र में, वो भी फाल्स सीलिंग के साथ चकना चूर हो गयी थी. इमरती के डर के मारे पांव ज़मीन में जम गए.

बॉक्सिंग रिंग के चारों तरफ मनो हडकंप मच गया. लोग अपनी कुर्सियों से उठ कर भागने लगे. "भागो भागो स्टेडियम ढह रहा है", एक आदमी गोपी के बगल से चिल्लाता हुआ भागा. "भूकंप आ गया भूकंप", किसी कोने से किसी औरत के चीखने की आवाज़ आई. मगर गोपी को पता था की क्या हुआ है. उसने पिंकी को गोद में उठाया, और इमरती का हाथ पकड़ कर खीचने लगा. इमरती ने रिंकू का हाथ पकड़ा और इससे पहले की कोई उन्हें कुछ कह सके गोपी के पीछे पीछे निकास की ओर तेज़ी से बढ़ने लगे. जैसे ही गोपी स्टेडियम के दरवाज़े से बहार निकला दूर कोने में उसने उसी टीवी वाली युवती को देखा. वो कैमरे की तरफ इशारा कर कर के कुछ चिल्ला रही थी. उसके अगल बगल और भी कई लोग माइक पकडे कैमरे में देख कर कुछ चिल्ला रहे थें. जो लोग ऐसा नहीं कर रहे थें वो चारों ओर तितर बितर भाग रहे थें.

टीवी वाली युवती की नज़र गोपी पे पड़ी. गोपी इमरती का हाँथ पकड़ कर जोर से खीचने लगा और अपने कदम तेज़ कर लिए. लेकिन तभी वो युवती बिलकुल गोपी के सामने आ कर खड़ी हो गयी और गोपी की ओर इशारा कर केकैमरे में कहने लगी, "देखिये येही है वो शख्स, येही है वो देश का गुनहगार जिसने इस स्टेडियम की फाल्स सीलिंग का काम किया ओर आज जब की सारी दुनिया की निगाहें हम पे थी, वो फाल्स सीलिंग, इस देश के दुश्मन के द्वारा बनायीं गयी वो फाल्स सीलिंग गिर गयी. हम आपको दिखा रहे हैं उस देश द्रोही का चेहरा सबसे पहले अपने चैनल पर. आइये पूछते हैं उसने ये घिनौनी हरकत क्यूँ की. देश की इज्ज़त के साथ ये खिलवाड़ क्यूँ किया आखिर इस दरिन्दे ने", और फिर गोपी के मूंह में माइक घुसेड़ते हुए पुछा "अब आप को कैसा लग रहा है."

इससे पहले की गोपी कुछ कह पाता दूसरे टीवी वाले उस युवती की बातें सुन कर गोपी के आस पास इक्कठा होने लगे. और एक साथ कई माइकों और कैमरों के हुजूम ने गोपी और उसके परिवार को चारों ओर से घेर लिया. गोपी ने कुछ कहने को मूंह खोला मगर भीड़ में उसकी आवाज़ कोई सुनने को तैयार नहीं था. वो कहता रहा की यह उसकी गलती नहीं है मगर इतने शोर में उसकी आवाज़ दब गयी. ऐसा लग रहा था मानो सैकड़ों मक्खियाँ कचरे के ढेर पे दावत उड़ा रही हो. लेकिन अचानक ही सारी मक्खियाँ दूसरी तरफ मुड गयी मानो उन्हें कोई दूसरा, ज्यादा ही स्वादिष्ट कचरे का ढेर दिख गया हो.

एक आदमी सफ़ेद खद्दर पहने, सर पे गाँधी टोपी लगाये, हाँथ जोड़े, लंगडाते हुए स्टेडियम की सीढियां चढ़ रहा था. उसके चारों तरफ पांच छह पुलिस वाले उसको घेर कर चल रहे थें और उनके हाथों में बंदूकें थी. पुलिस और बन्दूक देखते ही गोपी कांपने लगा. उसे लगा ये नेताजी उसको पकड़ने के लिए पुलिस ले कर आये थें. गोपी की घिग्घी बंध गयी. मन ही मन वो उस दिन को कोसने लगा जब वो गाँव से दिल्ली आया था, और उस से भी ज्यादा उस पल को जब उसने बॉक्सिंग मैच देखने का फैसला किया था. पसीने से तर बतर वो कोने में खड़ा कांप रहा था. पिंकी उसके पैरों को जकडे खड़ी थी, और रिंकू अपनी माँ का हाँथ पकडे सारा तमाशा देख रहा था.

इमरती ने देखा मक्खियाँ अब अपने नए शिकार के ऊपर भिनभिना रही थी मगर पुलिस वाले उनको कचरे के ढेर पे बैठने नहीं दे रहे थें. तभी इमरती का दिमाग ठनका, अब किसी का भी ध्यान उन पर नहीं था. सभी लोग नेताजी को घेरे खड़े थें. दरवाज़े के कोने में थोड़ी सी जगह थी, इमरती ने गोपी और रिंकू का हाँथ पकड़ा और जोर से दरवाजे की ओर खीचने लगी. गोपी अड़ियल सांड की तरह इमरती के पीछे खींचता गया, मगर उसकी आँखें पुलिस और उनके हांथों की बंदूकों पे टिकी रही. इमरती ने पूरी ताकत से गोपी को खींचा और घसीटते हुए दरवाज़े से बहार निकल गयी. किसी ने भी उन्हें रोका नहीं. स्टेडियम के कम्पाउंड से बहार आ कर इमरती ने चैन की सांस ली. पीछे देखा तो रिंकू और पिंकी दौड़ते आ रहे थें. गोपी अब भी डर के कारन जड़ित था. एक पेड़ की ओट में ले जा कर इमरती ने गोपी के कंधे पकड़ कर जोर से झंक्झोंरा. गोपी होश में आया और अपना माथा पकड़ कर ज़मीन पर बैठ गया.

"इससे पहले की कोई तुम्हे देख ले और जेल में डाल दे, चलो यहाँ से", इमरती ने गोपी की बाहें खीचते हुए कहा.

गोपी धीरे धीरे खड़ा हुआ, पिंकी को गोद में उठाया और रिंकू का हाँथ पकड़ कर बस स्टॉप की तरफ चलने लगा. इमरती ने इधर उधर देखा, आस पास कोई भी नहीं था, एक अमबुलंस स्टेडियम के अन्दर जा रही थी. इमरती गोपी के पीछे पीछे चलने लगी और बार बार पीछे मुड मुड कर देखती थी.

"बापू अब आप उस छत्त को कब ठीक करोगे", पिंकी ने अपना हाँथ गोपी चंदर के कंधे पे रखते हुए पुछा.

Disclaimer:

This story is a work of fiction and all incidents and names of the people occurring in this story are fictional. The story has been inspired from the movie 'Peepli Live' and the name of the story has been inspired from a phrase used in the song 'Des mera rangrez' performed by Indian Ocean in the same movie.